अरस्तु का जीवन :-
- अरस्तु का जन्म स्तागिरा नामक नगर में हुआ था , सन 384 ईसा पूर्व में हुआ था।
- प्राचीन यूनानी दशर्निक अरस्तु ने सुकारत और प्लेटो के साथ मिलकर पश्चिम दर्शन ( western philosophy ) के लिए बहुत साड़ी नीव रखी।
- उन्होंने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचनाएँ की थीं।
- अरस्तू को दर्शन, राजनीति, काव्य, आचारशास्त्र, शरीर रचना, दवाइयों, ज्योतिष आदि का काफ़ी अच्छा ज्ञान था। उनके लिखे हुए ग्रन्थों की संख्या 400 तक बताई जाती है। अरस्तू राज्य को सर्वाधिक संस्था मानते थे। उनकी राज्य संस्था कृत्रिम नहीं, बल्कि प्राकृतिक थी। इसे वह मनुष्य के शरीर का अंग मानते थे और इसी आधार पर मनुष्य को प्राकृतिक प्राणी कहते थे।
अरस्तु कोट्स - कोई भी व्यक्ति उस व्यक्ति से प्रेम नही करता जिससे वो डरता है।
अरस्तू |
अरस्तु के नागरिकता पर विचार
- नागरिक वह व्यक्ति है जो कानून बनता है और न्याय के प्रशासन में भाग लेता है
- किसी देश का नागरिक होने का मतलब है उस देश के कानून अधिकार प्राप्त होना।
- जिसके पास राज्य न्यायिक के प्रशासन में भाग लेने की सकती हो उसे ही उस राज्य का नागरिक कहा जाता है।
- नागरिकता की उपाधि रखने वाला व्यक्ति वह लोकतांत्रिक समुदाय का सदस्य मन जाता है, जिस पूर्ण नागरिक और राजनितिक अधिकार प्राप्त है उसे राज्य के क्षेत्र के अंदर और बाहर सुरक्षा प्राप्त होती है।
- अरस्तु ने अपनी कृत ' पॉलटिक्स ' के तीसरे खडं में नागरिकता से संबधी अपने विचर लिखे है। अरस्तु के अनुसार राज्य दिर्ष्टि से नागरिक को समुदाय है। राज्य नागरिक से मेल बनता है।
इस प्रकार अरस्तु के नागरिकता के सिद्धांत की तत्कालीन प्रचलित मान्यता का खंडन किया है। अरस्तु के अनुसार निम्नलिखित कारण है जो नागरिक नहीं है -
- राज्य में निवास करने मात्र से ही नागरिकता नहीं मिलती है , अरस्तु के अनुसार औरत , बच्चे , विदेशी , नागरिक नहीं है।
- राज्य से निष्कासित व्यक्ति और मतधिकर से वंचित व्यक्ति नहीं है।
- अभियोग चलाने वाले और अभियुक्त बनाने का अधिकार रखने वाले कोई भी व्यक्ति नागरिक नहीं होता है क्योकि संधि द्वारा यह अधिकार विदेशी व्यक्ति भी ले सकता है।
नागरिकता की प्रकति सविधान पर आधारित :-
अरस्तु के अनुसार नागरिकता शब्द का अर्थ प्रत्येक राज्य के सविधान के अनुसार अलग - अलग होता है। प्रत्येक राज्य के लोगो की विभिन्न कोटि और उप-कोटि थी। कुलीन तंत्र में शक्तियों को विभाजन असमान रूप से किया जाता था। लेकिन सामान्यता नागरिक को स्वतंत्र और समान होना चहिये है। उहने न्याय और सत्ता मिलना चाहिए। अरस्तु के अनुसार , नागरिको की अछाइयो को स्वतंत्र व्यक्तियों के सरकार में प्रयोग किया गया था। उन्होंने स्वीकार किया की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , अतः उसकी प्राकृतिक इच्छा समाज के जीवन की थी। यहाँ तक की उसे दूसरे की मदद लेने की जरूरत नहीं थी। नागरिको को राजनितिक अधिकार प्राप्त थे। उनसे अधिकारों के प्रति सजग तथा राज्य विभिन्न संस्थाए की सारी गतिविधिया में भाग लेने की अपेक्षा की जाती थी।
नागरिकता के लिए योग्यताएं :-
- नागरिकता के लिए शासन करने के लिए योग्यता के साथ गुण भी होना चहिये
- जिनका राज्य के कार्य में रूचि होना चाहिए
- नागरिकता के लिए समय व सम्पति का होना आवश्यक
- नागरिकता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति वौद्धिक तथा नैतिक योग्यता का होना आवश्यक
नागरिकता के लिए योग्यताएं |
नागरिकता संबधी आधुनिक दिर्ष्टिकोण एवं अरस्तु के दिर्ष्टिकोण :-
- आधुनिक युग की सरकारों के नागरिकता के बारे में बहुत ही उदारवादी दिर्ष्टिकोण अपनाकर चलना पड़ता है , यदि अरस्तु की तरह विधानपालिका , न्यायपालिका में व्यक्ति का आधार बनाया जाए तो व्यक्ति राज्य की नागतिकता से वंचित हो जाएगा।
- आज नागरिकता का निर्धारण करने का मूल आधार व्यक्ति का ब्र्ह अधिकार है जिसके होने पर व्यक्ति अपने प्रतिनिधियों के चुनवा कार्य में भाग ले सकता है , और स्वयं प्रतिनिधि बन सकता है तथा भाग ले सकता है , स्वयं प्रतिनिधि बन सकता है तथा राजकीय सेवा का अवसर प्राप्त कर सकता है।
- आज नागरिकता अभिजात वर्ग तक ही नहीं सीमित है बल्कि समाज वर्ग तक फैली हुई है , इसलिए अरस्तु के नगर में खोई हुई नागरिकता आधुनिक राज्य में आसानी से प्राप्त हो जाती है।
2. किसका यह विचार है कि राज्य व्यक्ति से पूर्व है?
Ans - अरस्तु
3. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । ” यह कहा है
Ans - अरस्तु
4. अरस्तु के अनुसार राज्य के सामाजिक ढांचे का निर्माण कितने वर्गों से मिलकर हुआ ?
Ans - 6
5. अरस्तु का जनम कौन से नगर में हुआ था ?
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