आर्थिक मंदी किसे कहते है ?
यदि किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट हो रही है, तो इसे आर्थिक मंदी कहा जाता है | जब किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर या जीडीपी तिमाही-दर-तिमाही लगातार गिरती ही जा रही है, तो ऐसी स्थिति को आर्थिक मंदी का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है, जिसका काफी प्रभाव देश की स्थिति पर भी दिखाई देता है | आर्थिक मंदी में वस्तुओं की डिमांड कम हो जाती है, जिससे उत्पादित माल की बिक्री में काफी गिरावट आ जाती है | जब वस्तुओं की बिक्री नहीं होती है तो, इसका पूरा प्रभाव उत्पादित करने वाली कंपनियों पर पड़ता है क्योंकि, मंदी की वजह से उन कंपनियों को भारी नुकसान चुकाना पड़ जाता है | यहाँ पर आपको आर्थिक मंदी क्या होती है, कारण, प्रभाव के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान की जा रही है |
भूमिका - प्रथम विश्व युध के पहले ब्रिटने संसार का प्रमुख ऋणदाता वाला देश था। महायुद्ध के बाद वह स्थान अमेरिका के पास चला गया था। 1919 से लेकर 1929 तक अमेरिका के राष्ट्रीय उत्पादन में 43 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी थी। श्रमिक की मजदूरी ( वास्तविक तथा मोद्रिक ) आय बढ़ गयी तथा बेरोजगारी लगभग समाप्त हो गई थी। 1922 से लेकर 1929 तक अमेरिका के विदेशी व्यपार में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 1929 तक अमेरिका 2100 डॉलर का ऋणदाता बन गया तथा निर्यात - आधिक्य के स्वरूप उसके पास संसार का 28 पर्तिशत स्वर्ण - कोष एकत्रित हो गया।
इस तरह , 1929 में अमेरिका अर्थव्यस्था समृद्धि की चरम सीमा पर पहुँच गया था किन्तु यहाँ समृद्धि बिलकुल अस्थायी थी तथा अक्टूबर , 1929 में वॉल्स - स्ट्रीट् के सकंट के साथ देश में सबसे बड़ी आर्थिक मंदी और संकट प्रारंभ हुआ जो 1939 ( Mastering modern world history ) तक बना हुआ रहा था। यह मंदी मूलतः अत्यधिक उत्पादन का परिणाम थी।
- सन 1929 , के इस महान आर्थिक मंदी के लिए निम्नलिख्ति कारण जिम्मेदार थे , जो इस प्रकर है -
- घरेलु उत्पादन में अधिक्ता :-
प्रथम विश्व युद्ध के समय अमेरिका में कृषि क्षेत्र नए उपकरण तथा अमेरिका सैनिकों की जरुरत जो पूरा करने के लिए कृषि क्षेत्र उत्पादन को बढ़ाया गया तथा उद्योगिक क्षेत्र में उद्योगपति के द्वारा भी अधिक लाभ कामने के लिए अधिक वस्तु का उत्पादन किया जा रहा था किन्तु जब बाद प्रथम विश्व युद्ध खत्म हुआ तो इनकी मांग में कमी आ गई। जिससे की कंपनी के अधिक से ज़्यदा समान स्टॉक में रखना पड़ता था जिस से कंपनी को आपने उत्पादन में कमी करने जरूरत पड़ी। जिस से काफी लोगो को आपने नौकरी से हाथ धोना पढ़ा जिस से के कारण देश में बेरोजगारी बढ़ गई। जिस से की लोगो की वस्तु खरीदने की छमता कम हो गई और यह क्रम ऐसे ही चलता गया। जोकि अमेरिका में आर्थिक मंदी के मह्त्वपूर्ण कारण बना।
2. अमेरिका पर व्यवस्थित अर्थवयस्था :-
प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी से लेकर रूस तक , फ्रांस से लेकर इटली तक , अमेरिका शैली के सुधार के विभन्न रूप समाने आये। इन सभी सुधारो को सस्ते अमेरिका ऋण , मशीनरी और पूंजीगत माल का समर्थन प्राप्त हुआ था। वस्तुतः इस युग में विश्व व्यपार को फिर से गतिशील होने का प्रमुख कारण यह था कि विश्व अर्थव्यस्था में अमेरिका से ऋणदाताओं ने भारी मात्रा में कर्ज लिया था। यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगा की प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्षो में यूरोप की गतिशीलता लगभग पूणतः अमेरिका ऋण पर चल रही थी। इस प्रकिया के दौरान अमेरिका ऋणदाताओं को लगतार अपने निवेश पर मुनाफा होने लगा। उदाहरण के लिए 1920 के दशक में अमेरिका ने जर्मनी को ऋण दिया। यह राशि जर्मनी ने हर्जाना के तौर पर फ्रांस और ब्रिटने को दे दिया। फ्रांस और ब्रिटने ने यह पैसा युद्ध के दौरान अमेरिका के लिए गए कर्ज का भुगतान के रूप में किया। विश्व अर्थव्यस्था इस समय अमेरिका केंद्रित अर्थव्यस्था मुझे कहने आपत्ति नहीं होगी। विश्व अर्थव्यस्था मुद्रा आपत्ति से अप्लावित हो गई जिसमे अधिकांश पैसा अमेरिका का था। इस माहौल में सटेटबाज़ो ने अपना महत्व बढ़ना शुरू कर दिया। इस युग में वित्तीय घपलों का और कुप्रबधों का बोलबाल रहा जो दशक के आते - आते अपने चरम सीमा पर पहुंच गया। जो की आर्थिक महामंदी के लिए एक बहुत बड़ा कारक बनी।
3. आय के विषमता में वृद्धि :-
अमेरिका में उद्योगपति द्वारा कमाया जा रहा भरी मुनाफा का समान रूप से वितरण नहीं किया जा रहा था। अपने मजदूरों के बीच में। सन 1923 से 1929 के औद्योगिक श्रमिको की वेतन लगभग 8 प्रतिशत थी , लेकिन उद्योगपति की आय में 72 प्रतिशत की वृद्धि थी और और श्रमिको की आय में सामान्यतः ( 1. 4 प्रतिशत के वृद्धि हुई थी ) इसका मतलब यह था की वहाँ आम जनता की क्रय - शक्ति बहुत काम थी , जिसकी वजह से वह केवल अपने लिए आवश्यक वस्तुओ को मतलब खरीद सकते थे इसी के कारण बहु - निगम निर्माता कंपनी वस्तुओ की कीमत में कमी नहीं करना चाहती थी और मजदूरी में पर्याप्त वृद्धि करे के लिए तैयार नहीं थे और इसलिए निर्मित उपभोक्ता वस्तुओ की भरमार हो गयी।
इस समय अभी भी अमेरिका के आम जनता के पास रेडियो नहीं था , कोई इलेट्रॉनिक और वाशिंग मशीन और कोई कार नहीं था क्योकि वह उन्होंने वाहन नहीं कर सकते थे। लोगो ने अपने खर्च कम कर दिए फिर बाजार में वस्तुओ तथा सेवाओं की कीमत कम होने लगी परिणाम स्वरुप कंपनियों ने उत्पादन कम कर दिया , जिस से कई कम्पनिया बंद होने लगी और जब उत्पादन नहीं होगा तो कई कम्पनिया लोगो की नौकरी पर क्यों रखना चाहेंगी फलतः जिसके कारण नौकरियां जाने लगी जिस से अमेरिका सहित पूरी दुनिया पर महामंदी छा गयी थी।
4. स्टॉक मार्केट में शेयर की कीमत गिरना
1926 में नई यॉर्क स्टॉक मार्केट में एक अनुमान के करण कई लोगो कम्पनियो के शेयर खरीदना शुरू कर दिए बिना किसी आर्थिक जानकारी या बिना किसी विशेलेषण कर हुए। जिन लोगो के पास पैसा नकदी में होता था। वह दो कारणों से कंपनियों के शेयर खरदने के लिए उत्साहित होते थे -
1) कंपनियों द्वारा कमाए जा रहे लाभ का हिस्सा बनने के लिए शेयर खरीदते थे।
2) जल्दी से जल्दी लाभ कमाने के लिए
1920 के समय में लोगो ने ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के लिए कंपनियों के बढ़ते लाभ की देखते हुए लोगो में शेयर की खरीदने की होड़ लग गयी जिस के कारण कोअन्य के शेयर में काफी वृद्धि हुई। यह माना जाता है की कई कंपनियों के शेयर की औसत कीमत 1924 में 9 $ से 1929 में बढ़कर 26 $ हो गया था। अमेरिका की एक जानीमानी रेडिओ कंपनी का शेयर 1928 में 85 $ से बढ़कर सितम्बर 1929 में 505 $ हो गया था परन्तु यह कंपनी उस समय किसी भी प्रकर का लाभ नहीं काम रही थी।
कम समय में ज्यादा लाभ कमाने इस पागलपन से लोगो में शेयर खरदने का भूत सवार हो गया। जिस वजह से लोगो ने कई शेयर ख़रीदे। स्टॉक ब्रोकर ने अपने लाभ के लिए कई शेयर को स्लोड करके रख दिया , जिस से बैंको मैं लोगो ने कैश जमा करवाना कम कर दिया। यह सब प्रक्रिया अब के जुआ के रूप ले चूका था। 1929 में जब यह संकेत दिखाई दिया की माल की बिक्री का होने लगा था। जिस से कुछ बेहतर जानकार निवेशकों ने अपने शेयर बेचने के फैसला लिया। शेयर कीमत ज्यादा होने पर भी। जिस से लोगो में यह संदेह फैला की भविष्य गलत होने वाला है जिस से लोगो में एक डर का माहौल बन गया , जिस वजह से अपने शेयर को बेचना शुरू कर दिया।
अक्टूबर , 1929 में लोगो में अपने शेयर बेचने के लिए बाढ़ सी आ गयी लोग अपने शेयर बेचने शुरू कर दिया। 24 अक्टूबर 1929 में ' ब्लैक थर्सडे ' के नाम से जाना जाता है। इस दिन 13 मिलियन शेयर को कचरे की कीमत पर बेचा दिया गया। यह माना जाता है की यह घटना 1932 तक अपनी चरम पर पहुंच गयी थी और देखते ही देखते सयुंक्त राज्य अमेरिका मंडी की चपेटे में आ गया। इस तरह पूरी दुनिया को महामंदी से गुजरना पड़ा।
5. बैंको की दोषपूर्ण साख नीति :-
अक्टूबर , 1929 में लोगो में अपने शेयर बेचने के लिए बाढ़ सी आ गयी लोग अपने शेयर बेचने शुरू कर दिया। 24 अक्टूबर 1929 में ' ब्लैक थर्सडे ' के नाम से जाना जाता है। इस दिन 13 मिलियन शेयर को कचरे की कीमत पर बेचा दिया गया। यह माना जाता है की यह घटना 1932 तक अपनी चरम पर पहुंच गयी थी और देखते ही देखते सयुंक्त राज्य अमेरिका मंडी की चपेटे में आ गया। इस तरह पूरी दुनिया को महामंदी से गुजरना पड़ा।
बैंको की दोषपूर्ण साख नीति :- विदेशी व्यपार में वृद्धि तथा ऋण के कारण अमेरिका में अन्य स्वर्ण संग्रहित होता चला आ रहा। था बैंको जो स्वर्ण की उसी के आधार ओर उन्होंने अतयधिक साख का विस्तार शुरी किया तथा सटेबाजो पैमाने ओर ऋण किया। यह बैंकिंग के सिद्धांत एव नीति के पूर्णयता पप्रतिकूल था , इस प्रकार बैंको ने अत्यधिक मात्रा में साख का सजृन किया था, किन्तु ज्यो ही 1929 में महान मंदी शुरू हुई हिस्से एव प्रतिभूतिया के मूल्यों में अतिशय कमी हो गई , जिस से बैंको के बहुत अधिक पूंजी मारी गयी , वे अपने ग्राहको की मांग पूरी तरह नहीं कर सके , जिस से बैंको को बाध्य होकर बहुत सारे बैंको को अपना कारोबार बंद करना पड़ा।
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