अफगानिस्तान में तालिबान का इतिहास और उदय

 तालिबान का अर्थ -  

तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ' छात्र ' जिसकी स्थापना 1994 में हुई थी। जिसका  संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर था। 

अफगानिस्तान की राजनितिक वयवस्था -: 

तालिबान का उदय जान ने से पहले हमें अफगानिस्तान की रजनीतिक व्यवस्था को समझना बहुत जरुरी है। इस समय अफगानिस्तान में पी.डी.पी (पीपुल डेमोक्रेटिक पार्टी पार्टी) का शासन चल रहा था, जो समाजवादी रजनीतिक विचारधारा की थी। इसी कारण सोवियत संघ में अफगानिस्तान ने ज्यदा हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था क्योकि दोनो देशो की विचारधार एक थी। 

एक ओर पी.डी.पी दो अलग भागों में बट गई थी। 1 ) ख़ल्क़ (2 पर्चम  ओर इसी  वजह से दोनों पार्टी में अनबन होना शुरू हो गई थी।  अफ़ग़ानिस्तान  में पी.डी.पी पार्टी के नेता ने कुछ ( मॉडर्न रिफॉर्म्स ) कार्य किये  और यह काम वहां के लोगो को रास नहीं आया जिसके कारण से वहां के लोगो ने वहाँ की सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया क्योकि यहाँ के लोगो को अपने देश की संस्कृत से परंपारिक लगवा था।  इसी वजह से वहां की जनता  ने सरकर का विरोध करना शुरू कर दिया तथा पी.डी.पी. पार्टी में अंदुरनी  अनबन काफी बढ़ गई थी।  

अफ़ग़ानिस्तान में हो रही इन घटनाक्रम को देख कर सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में अपने कदम मजबूत किया लेकिन सोवियत संघ का अफगानिस्तान से से कुछ खास  सम्बन्ध बन नहीं पाया और दोनों के रिश्ते में जल्दी ही खटास आ गया क्योकि जैसे ही सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में आया तो अमेरिका कहा पिछे रहने वाला था।   जिस समय अफगानिस्तान में सोवियत संघ आया उसी के कुछ समय बाद अमेरिका भी आ गया  क्योकि इस समय  शीत युद्ध  चल रहा  था। 1979 से 1989 तक सोवियत अफगान वॉर हुआ।  1989 में सोवियत संघ ने अपनी सेना वहां से वापस बुला ली।     

क्यों सोवियत संघ ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुला लिया ?

 इसके मुख्यत 2 से 3 कारण थे -:

1) अमेरिका का पी. डी. पी. पार्टी के ख़िलाफ़ वाले लोगो को आर्थिक और हथियार से संबधित सहायत करना तथा ट्रेनिंग देना। 
2) 1980 के  समय में पाकिस्तान और ISI ने 90,000 अफगान को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया था। 
3)  सोवियत संघ खुद विघटन के कारगार पर खड़ा था इसलिए सोवियत संघ ने अपनी सेना को वापस बुला लिया ।  

Russian Army
              सोवियत संघ ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाते हुए



1987, में कमाल बरबार को सत्ता से हटा दिया गया। 
अब अफगानिस्तान में ' मुजाहिद्दीन ' बहुत ताकतवर संगठन बन गया था , अमेरिका व सऊदी अरब तथा पाकिस्तान के सहायत से।    

अब अफगानिस्तान में शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए अफगानिस्तान में 1992 , में पेशावर रिकार्ड्स समझौता हुआ। इस्लामिक स्टेट ऑफ़ अफगानिस्तान की स्थापना हुई। 

 1992 में हेज - ऐ - इस्लामिक  गुलबंद पार्टी ने अफगानिस्तान के अंतिरम सरकार को मानने से इंकार कर दिया तथा अप्रैल में काबुल पर कब्ज़ा कर लिया और अफगानिस्तान में गृह युद्ध की शुरुआत कर दिया।  1992 , पी.डी.पी पार्टी के नजीब उल्ला को सत्ता से बेदखल कर दिया। 

तालिबान का उदय: 

मुल्ला  मोहम्मद उमर ने  50 छात्रों के साथ सितम्बर में अफगानिस्तान के कंधार  से अपनी तालिबानी संगठन की शुरुआत की और केवल एक महीने के अंदर 15000 छात्रों ने इस संगठन का सदस्य बन गए।  इनका मकसद बड़े - बड़े शहरों पर कब्ज़ा कर लिया।  1995 तक काबुल पर कब्ज़ा कर लिया। पश्तून आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमा ली थीं। इस आंदोलन का उद्देश्य था कि लोगों को धार्मिक मदरसों में जाना चाहिए। इन मदरसों का खर्च सऊदी अरब द्वारा दिया जाता था। 1996 में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के अधिकतर क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। 1996 से 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया। 
तालिबान के शासन में सामजिक कानून 
1990 के दशक में तालिबान एक ऐसा कटरपंथी धार्मिक समूह के रूप में उभरा था।  जिसने पुरे अफगानिस्तान को अपने शिकंजे में ले लिया था और उसके अनुसार कानून बनाने शुरू कर दिये थे। शरिया कानून के तहत महिलाओं पर कई तरह की कड़ी पाबंदियां लगा दी गईं थी। सजा देने के वीभत्स तरीकों के कारण अफगानी समाज में इसका विरोध होने लगा 

                      
Rising of Taliban

                                         तालिबान 


तालिबान शासन  के दौरान अफगानिस्तान में  सामजिक व्यस्था:- 

1) तालिबान ने शरिया कानून के मुताबिक अफगानी पुरुषों के लिए बढ़ी हुई दाढ़ी और महिलाओं के लिए बुर्का पहनने का फरमान जारी कर दिया था। 

2) टीवी, म्यूजिक, सिनेमा पर पाबंदी लगा दी गई। दस उम्र की उम्र के बाद लड़कियों के लिए स्कूल जाने पर मनाई थी। 

3) पुरुष डॉक्टर द्वारा चेकअप कराने पर महिला और लड़की का बहिष्कार किया जाएगा। इसके साथ महिलाओं पर नर्स और डॉक्टर्स बनने पर पाबंदी थी। 

4) तालिबान के किसी भी आदेश का उल्लंघन करने पर महिलाओं को निर्दयता से पीटा और मारा जाएगा।


War

9/11 का आतंकवादी हमला :- 

2001 में अमेरिका पर  9/11 आतंकी हमला हुआ।  जिसका आरोपी  अमेरिका के जॉर्ज डब्लूए  बुश  सरकार  ने अफगानिस्तानी आतंकवादी संगठन अल - कायदा पर लगया और अल - कायदा के लीडर ओसमा - बिन - लादिन को अमेरिका को सौपने को कहा लेकिन तालिबान ने अमेरिका को सौपने से मना कर दिया।  जिसके जवाब में अमेरिका ने NATO के नेतृत्व ' operation enduring freedom ' शुरू किया। 2010 तक 100,000  अमेरिका सेना अफगान में थी। 2005  में पहली बार अफगानिस्तान में ' Free and Fare  Election '  हुआ।  



operation enduring freedom

क्यों अमेरिका  ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुला लिया ?

अमेरिका ने तालिबान को हानि तो पहुंचाया लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं  कर पाया।


इसके निम्नलिखित कारण है -:

1) तालिबान का  ज़्यदातर कब्ज़ा  गांव में था।   
2) तालिबानी गुरिल्ला युद्ध निति से लड़ते थे। 
3) अफगानिस्तान की भूगोलिक वयवस्था अर्थात पहाड़ो , जंगलो , को ज़्यदा होना। 
4) तालिबानी लोगो हेरोइन का व्यपार  करते थे , जिसके वजह से इनके पास पैसे की कमी नहीं होती थी और न ही हथियारों। 
5) इसी वजह से 45,000 अमेरिकी सेना का मारा जाना। 
6) 2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होना।    

इसी वजह से अमेरिकी जनता ने  अमेरिकी सरकर का विरोध करना शुरू कर दिया , जिसके दवबा में अमेरिकी सरकार ने तालिबान के साथ शांति समझौता करने को तैयार हो गई ।  डोनाल्ड ट्रंप  के नेतृव अमेरिका ने 2018 से ही तालिबान से शांति समझौता के लिया प्रयास करना शरू कर दिया। 24 फ़रवरी,  2020 में कतर की राजधानी दोहा में शांति समझौता हुआ। 



Map


अंत - जैसे ही अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से पूरी तरह जाने के बाद तालिबानियों ने  एक बार फिर अफगानिस्तान में चल रहे लोकतांत्रिक सरकार की सत्ता पर हथियारों और अपने धार्मिक कटरपंथी विचाधार की शक्ति से   15 अगस्त 2021 को एक बार फिर अफगानिस्तान  की राजधानी काबुल पर कब्ज़ा कर देश का शासन आपने हाथो में लिया है।  जिसे पहले की तरह अफगनिस्तानी जनता के मानव अधिकार खतरे में आ गया है और वहाँ  आवाम में डर का माहौल है।  एक बार फिर  दुनिया ने डार्क एज को अनुभव किया।  


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